Inspirational story of the Amitabh bachhan
अमिताभ बच्चन जी की सीख
अमिताभ_बच्चन_कहते_हैं ... "अपने करियर के चरम पर, मैं एक बार हवाई जहाज से यात्रा कर रहा था। मेरे बगल वाली सीट पे एक साधारण से सज्जन व्यक्ति बैठे थे, जिसने एक साधारण शर्ट और पैंट पहन रखी थी। वह मध्यम वर्ग का लग रहा था, और बेहद शिक्षित दिख रहा था।
अन्य यात्री मुझे पहचान रहे थे कि मैं कौन हूँ, लेकिन यह सज्जन मेरी उपस्थिति के प्रति अंजान लग रहे थे ... वह अपना पेपर पढ़ रहे थे, खिड़की से बाहर देख रहे थे, और जब चाय परोसी गई, तो उन्होंने इसे चुपचाप पी लिया ।
उसके साथ बातचीत करने की कोशिश में मैं उन्हें देख मुस्कुराया। वह आदमी मेरी ओर देख विनम्रता से मुस्कुराया और 'हैलो' कहा।
हमारी बातचीत शुरू हुई और मैंने सिनेमा और फिल्मों के विषय को उठाया और पूछा, 'क्या आप फिल्में देखते हैं?'
आदमी ने जवाब दिया, 'ओह, बहुत कम। मैंने कई साल पहले एक फिल्म देखा था। '
मैंने उल्लेख किया कि मैंने फिल्म उद्योग में काम किया है।
आदमी ने जवाब दिया .. "ओह, यह अच्छा है। आप क्या करते हैं?"
मैंने जवाब दिया, 'मैं एक अभिनेता हूं'
आदमी ने सिर हिलाया, 'ओह, यह अद्भुत है!' तो यह बात हैं ...
जब हम उतरे, तो मैंने हाथ मिलाते हुए कहा, "आपके साथ यात्रा करना अच्छा था। वैसे, मेरा नाम अमिताभ बच्चन है!"
उस आदमी ने हाथ मिलाते हुए मुस्कुराया, "थैंक्यू ... आपसे मिलकर अच्छा लगा..मैं जे आर डी टाटा (टाटा का चेयरमैन) हूं!"
मैंने उस दिन सीखा कि आप चाहे कितने भी बड़े हो।हमेशा आप से कोई बड़ा होता है।
इसीलिए कहा गया है विनम्र बनो, इसमें कुछ भी खर्च नहीं है।
बहुत ही प्रेरणादायक सुन्दर कथा
एक महिला रोज मंदिर जाती थी ! एक दिन उस महिला ने पुजारी से कहा अब मैं मंदिर नही आया करूँगी !
इस पर पुजारी ने पूछा -- क्यों ?
तब महिला बोली -- मैं देखती हूँ लोग मंदिर परिसर में अपने फोन से अपने व्यापार की बात करते हैं ! कुछ ने तो मंदिर को ही गपशप करने का स्थान चुन रखा है ! कुछ पूजा कम पाखंड,दिखावा ज्यादा करते हैं !
इस पर पुजारी कुछ देर तक चुप रहे फिर कहा -- सही है ! परंतु अपना अंतिम निर्णय लेने से पहले क्या आप मेरे कहने से कुछ कर सकती हैं !
महिला बोली -आप बताइए क्या करना है ?
पुजारी ने कहा -- एक गिलास पानी भर लीजिए और 2 बार मंदिर परिसर के अंदर परिक्रमा लगाइए । शर्त ये है कि गिलास का पानी गिरना नहीं चाहिये !
महिला बोली -- मैं ऐसा कर सकती हूँ !
फिर थोड़ी ही देर में उस महिला ने ऐसा ही कर दिखाया ! उसके बाद मंदिर के पुजारी ने महिला से 3 सवाल पूछे -
1.क्या आपने किसी को फोन पर बात करते देखा?
2.क्या आपने किसी को मंदिर में गपशप करते देखा?
3.क्या किसी को पाखंड करते देखा?
महिला बोली -- नहीं मैंने कुछ भी नहीं देखा !
फिर पुजारी बोले --- जब आप परिक्रमा लगा रही थीं तो आपका पूरा ध्यान गिलास पर था कि इसमें से पानी न गिर जाए इसलिए आपको कुछ दिखाई नहीं दिया|
अब जब भी आप मंदिर आयें तो अपना ध्यान सिर्फ़ परम पिता परमात्मा में ही लगाना फिर आपको कुछ दिखाई नहीं देगा| सिर्फ भगवान ही सर्वत्र दिखाई देगें|
'' जाकी रही भावना जैसी ..
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी|''
जीवन मे दुःखो के लिए कौन जिम्मेदार है ?
ना भगवान,
ना गृह-नक्षत्र,
ना भाग्य,
ना रिश्तेदार,
ना पडोसी,
ना सरकार,
जिम्मेदार आप स्वयं है|
1) आपका सरदर्द, फालतू विचार का परिणाम|
2) पेट दर्द, गलत खाने का परिणाम|
3) आपका कर्ज, जरूरत से ज्यादा खर्चे का परिणाम|
4) आपका दुर्बल /मोटा /बीमार शरीर, गलत जीवन शैली का परिणाम|
5) आपके कोर्ट केस, आप के अहंकार का परिणाम|
6) आपके फालतू विवाद, ज्यादा व् व्यर्थ बोलने का परिणाम|
उपरोक्त कारणों के अलावा सैकड़ों कारण है और बेवजह दोषारोपण दूसरों पर करते रहते हैं | इसमें ईश्वर दोषी नहीं है|
अगर हम इन कष्टों के कारणों पर बारिकी से विचार करें तो पाएंगे की कहीं न कहीं हमारी मूर्खताएं ही इनके पीछे है|
यादृशैः सत्रिविशते यादृशांश्चोपसेवते।
यादृगिच्छेच्च भवितुं तादृग् भवति पूरुषः ॥
भावार्थ :
व्यक्ति जैसे लोगों के साथ उठता -बैठता है, जैसे लोगों की संगति करता है, उसी के अनुरूप स्वयं को ढाल लेता है।
दर्पण जब चेहरे का दाग दिखाता हैं, तब हम दर्पण नहीं तोड़ते बल्कि दाग साफ करते हैं। उसी प्रकार हमारी कमी बताने वाले पर क्रोध करने के बजाय कमी दूर करना श्रेष्ठ हैं।
न चोरहार्यं न च राजहार्यंन भ्रातृभाज्यं न च भारकारी ।
व्यये कृते वर्धते एव नित्यं विद्याधनं सर्वधन प्रधानम् ॥
भावार्थ:विद्यारुपी धन को कोई चुरा नहीं सकता, राजा ले नहीं सकता, भाईयों में उसका भाग नहीं होता, उसका भार नहीं लगता, (और) खर्च करने से बढता है । सचमुच, विद्यारुप धन सर्वश्रेष्ठ है ।
जीवन तो बड़ा आनंदमय है लेकिन हम अपनी इच्छाओं के कारण और वासनाओं के कारण इसे कष्टप्रद और क्लेशमय बनाते हैं
प्रारब्ध में जितना लिखा है और जब मिलना लिखा है उतना ही मिलेगा और उसी समय पर मिलेगा।
कर्म जरूर करते रहें पर चिन्तित कदापि ना हों
जीवन के लिए जो जरुरी है उतना प्रकृति कारण से नहीं करुणा से अपने आप दे देती है।
सच्चाई बहुत साधारण है,मुश्किल तब होती है जब हम इसे समझाने का प्रयास करते हैं.!
उपाध्याय दास आचार्यः आचार्यन शतं पिता |
सहत्रं तु पितृन् माता अभिमानरूप चच्यते ||
अर्थात- व्यक्ति के निर्माण में, एक आचार्य (आध्यात्मिक गुरु और वेदों-शास्त्रों का मर्मज्ञ) उपाध्याय (वेदों को जानने वाला) से दस गुना श्रेष्ठ होता है। पिता सौ आचार्यों के बराबर, और माता हज़ार पिताओं से श्रेष्ठ होती है।। आचार्य
जीवन में सबसे मुश्किल ओर इम्तिहान की घड़ी तभी होती है जब हर तरफ से चोट पड़ रही हो और आपने संयम का रास्ता अपनाया हो
जो व्यक्ति दूसरों को सहारा देता है उसे अपने लिए सहारा माँगना नहीं पड़ता
परमात्मा स्वतः दे देता है
किसी प्यासे को पानी पिलाने का किसी गिरे हुए को उठाने का और किसी भूले को राह दिखाने का अवसर मिल जाये तो चूकना मत क्योंकि ऐसा करने से आप बहुत ऋणों से मुक्त हो जाओगे।
Rose day
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