स्वामी विवेकानंद जी का बाल्यकाल
सबसे पहले तो आप सभी को स्वामी विवेकानंद जी के जन्म दिवस (राष्ट्रीय युवा दिवस) की शुभकामनाएं।
जब नरेंद्र बाल्यकाल अवस्था में थे तब उन्होंने एक बार बताया कि जब वे ध्यान के लिए बैठते हैं तो उन्हें दोनों भौहों के बीच एक ज्योतिष पिंड सा दिखलाई पड़ता है और यही बात रात को सोते समय भी उनके साथ होती है किंतु नरेंद्र ने कभी इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया था उन्हें लगता था कि सभी के साथ ऐसा ही होता है और यह बड़ी साधारण सी बात उन्हें कभी भी अपने अंदर विद्वान अलौकिक शक्ति का आभास नहीं हुआ।
National youth day
एकाग्रता और ध्यानमग्नता
एक बार नरेंद्र अपने दोस्तों के साथ कमरे में ध्यान मग्न थे तभी उनमें से एक दोस्त ने आकर भयानक नाग को वहां देखा उसने चिल्लाकर दूसरे दोस्तों को बताया सभी दोस्त डर कर वहां से इधर-उधर भागने लगे मगर नरेंद्र उस जगह ध्यान मग्न बैठे रहे उन लोगों ने चीख चिल्लाकर नरेंद्र को नाग की बात बताई मगर नरेंद्र ने अपनी आंखें नहीं खोली वह ध्यान मग्न ही रहे।
नाग नरेंद्र के सामने ही अपना फन फैलाए बैठा था उनके दोस्तों की चीख-पुकार सुनकर घर वाले भी वहां गए थे परन्तु नरेंद्र टस से मस ना हुए वह नरेंद्र के सामने नाग को बैठे देखकर घबरा गए किसी के समझ में नहीं आ रहा था कि नरेंद्र को किस प्रकार से हटाए थोड़ी देर बाद ही नाग अपने-आप ही वहां से चला गया कुछ देर बाद नरेंद्र ने अपनी आंखें खोली और उन्होंने सब लोगों को अपने आसपास पाया तो सब लोगों की बात सुनकर नरेंद्र ने कहा कि मैंने तो आप लोगों की आवाज सुनी नहीं थी मुझे तो इस बात का जरा भी आभास नहीं हुआ।
यह एक संयोग ही माना जा सकता है कि जो बालक इतना शरारती तथा जिद्दी है जब वह ध्यान में बैठता है तो सब कुछ भूल कर और एकाग्र होकर निर्वाचित स्थान में रखे दीपक के समान अचेतन और अभिषेक स्थिति में पहुंच जाता था।
नरेंद्र अब अक्सर अपनी आवश्यकता की चीजें उठाकर सन्यासियों को दे दिया करते थे इस बात पर उन्हें घरवालों से डांट फटकार भी खानी पड़ती थी। बाल्यावस्था में वे कभी-कभी तो अपने माथे पर भभूत लगाकर और छोटी सी लंगोटी बांधकर पूरे घर में "बम बम महादेव","हर हर महादेव",जय शिव जय शिव कहते हुए जोर-जोर से ताली बजाकर नाचने लगते थे। भुवनेश्वरी देवी जब उन्हें इस प्रकार की हालत में देखती तो उन्हें क्रोध आने की वजह हंसी आ जाती और वे जोर-जोर से हंसने लगती थी बालक की क्रीड़ा ने देखकर ना जाने उनका गुस्सा कहां गायब हो जाता था।
कभी-कभी वो नरेंद्र के भविष्य के बारे में सोचने लगती थी फिर अपने आप ही कहने लगती - "मैं क्यों चिंता करो भगवान की जैसी इच्छा होगी वैसा ही होगा और मैं होती ही कौन हूं चिंता करने वाली।"
ईश्वर पर आस्था और विश्वास
नरेंद्र ने बचपन से ही रामायण और महाभारत के अनेकों प्रसंगों को कंठस्थ कर लिया था कभी कभी अकेले ही इन्हें गाने लगते थे। नरेंद्र को रामायण के अंदर हनुमान जी का चरित्र पे बहुत ही पसंद था। हनुमान जी की स्वामी भक्ति ब्रह्मचारी और सेवा भाव के गुणों से नरेंद्र बहुत ही प्रभावित थे हनुमान जी का जीवन रूप असंभव कार्य को संभव कर दिखाने वाला पात्र उनकी एक एक बात को नरेंद्र गहराई से सोचते और मन ही मन उनसे प्रेरणा लेते रहते मां ने उन्हें बताया था कि हनुमान जी तो अजर अमर है कभी नहीं मरते, हमेशा जीवित हैं मां की बात सुनकर नरेंद्र हनुमान जी से मिलने की सोचने लगे लेकिन वह नहीं जानते थे कि वह मिलेंगे कहां? हनुमान जी से मिलने की इच्छा अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गई एक बार की घटना है कि घर में कथा के दौरान पंडित जी हनुमान जी के चरित्र का वर्णन कर रहे थे सब लोगों को बता रहे थे कि फलों का भोजन बहुत पसंद होने का हनुमान जी बगीचों में ज्यादा रहते थे, पंडित जी के बाद सुनते हैं नरेंद्र उठकर उनके पास पहुंचकर वाले पंडित जी क्या केलाबाड़ी में हनुमान जी के वहां वह केले खाने आते ही होंगे?
पंडित जी ने बालक समझकर उन्हें यूं ही कह दिया हां हां क्यों नहीं जरूर मिलेंगे बालक नरेंद्र यह बात सुनकर सीधे केलाबाड़ी की ओर चल दिए वहां जाकर हनुमान जी की तलाश करने लगे उन्होंने बहुत ढूंढा मगर उन्हें वहां कोई नहीं मिला। थक हार कर एक जगह बैठ कर और मन ही मन सोचने लगे कि हनुमान जी कहीं गए हुए हैं अभी थोड़ी देर बाद लौट आएंगे मगर हनुमान जी नहीं आए।
जब शाम होने लगी और अंधकार बढ़ गया तो नरेंद्र उदास होकर मुंह लटकाए घर आ गए घर पर आकर उन्हें अपनी मां से पूरी घटना के बारे में बताएं माँ ने बच्चे की बात गौर से सुनी और फिर इस डर से कि कहीं इसका विश्वास ना टूट जाए बोली बेटी निराश होने की आवश्यकता नहीं वे राम के सेवक हैं, हो सकता है रामजी ने उन्हें अपने किसी काम से भेज दिया हो। इस बार तुम फिर जाओगे तो वह तुम्हें जरूर मिल जाएंगे नरेंद्र के बेचैन स्वभाव को मां की बात से थोड़ी सी शांति मिली उसके बाद ना जाने फिर वह दोबारा चले गए या नहीं इस विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन इस बात में कोई शक नहीं कि उनके मन पर हनुमान जी के चरित्र का इतना गहरा प्रभाव पड़ा था कि आगे चलकर उनका विश्वास और भी मजबूत हो गया । वे हमेशा अपने मित्रों को हनुमान की भांति निष्काम सेवा व्रत ग्रहण करने की सलाह देते थे।
प्राथमिक शिक्षा
जब नरेंद्र 6 साल के थे तो घर पर ही उनकी शिक्षा का उचित प्रबंध कर दिया गया शुरू में तो नरेंद्र के अध्यापक को थोड़ी दिक्कत का सामना करना पड़ा क्योंकि शरारती नरेंद्र अपनी शर्तों से कहां बाज जाने वाले थे फिर फिर गुरु जी ने सोच विचार कर एक उपाय निकाला और उन्होंने नरेंद्र को डांटने के स्थान पर प्रेम पूर्वक पढ़ाना शुरू कर दिया इसका परिणाम अच्छा रहा और उनकी प्राथमिक शिक्षा घर पर ही संपन्न हो गई, इसके पश्चात मेट्रोपॉलिटन इंस्टिट्यूट में शिक्षा होने लगी यहां की बार मंडली को देखकर नरेंद्र की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा कुछ ही दिनों में वह बाल टोली के नेता बन गए वह अपने नए नए साथियों के साथ खूब धमाल चौकड़ी मचाते।
शुरू में तो नरेंद्र को यह सब सुखद लगा परंतु जैसे ही पाठशाला का अनुशासन बढ़ा नरेंद्र ऊबाऊ सोचने लगा उनको यह सब कुछ जंजाल लगने लगा। वहां कक्षा में देर तक बैठना पड़ता था और उन्हें 6 घंटे पाठशाला में ही काटने पड़ते थे वे जरा सी देर बैठ कर खड़े हो जाते और बाहर चले जाती कभी-कभी क्रोध आ जाने पर किताब को फाड़ डालते इस शरारती बच्चे को देखकर शिक्षक झल्ला जाते लेकिन कुछ दिनों बाद अध्यापकों ने कठोर अनुशासन के स्थान पर प्रेम पूर्ण व्यवहार का प्रयोग कर पढ़ाना शुरू किया इससे बहुत लाभ हुआ।
निडरता
नरेंद्र को डर तो लगता ही नहीं था वह किसी से भी नहीं डरते थे बच्चों को भूत प्रेतों से बहुत डर लगता था परंतु नरेंद्र तो इन चीजों से भी भयभीत नहीं होते थे उनका जिद्दी स्वभाव दृढ़ता में बदल गया था वे अपनी मंडली का नेतृत्व करते, खेलकूद में बच्चे लड़ते तो उनसे ही न्याय कराते।
नरेंद्र के पड़ोस में उनके दोस्त का मकान था उसके घर में चंपा के फूलों का पेड़ था। नरेंद्र पेड़ पर चढ़ जाते और टांगों की कैची में पेड़ की डाल से उल्टा लटक कर झूलने लगते।
एक दिन नरेंद्र इसी तरह उल्टा होकर झूल रहे थे घर के बूढ़े मालिक ने उन्हें देखा तो उसका दिल कांप गया उसने सोचा अगर यह बच्चा गिर गया तो उसको चोट लग जाएगी पर वे जानते थे कि मना करने पर रुकेगा नहीं यही सोचते हुए नरेंद्र से बोले बेटा आगे से इस पेड़ पर कभी नहीं चढ़ना इस पर ब्रह्म राक्षस रहता उन्होंने ब्रह्मा राक्षस के भयानक रूप का वर्णन कर उनको बताया कि वह डर जाए और यह भी कहा कि वह राक्षसी इसी पेड़ पर रहता है इसलिए अगर कोई इस पेड़ पर चढ़ता है और उस राक्षस को गुस्सा आ जाता है नरेंद्र उनकी बात चुप चाप सुनते रहे यह देखकर उन्होंने समझा कि बच्चे पर असर हुआ है पर उनके जाते ही वे फिर से पेड़ पर चढ़ गए और एक बच्चे से कहने लगे आज तो मैं ब्रह्म राक्षस को देखकर ही रहूंगा बच्चे ने कहा ब्रह्मराक्षस हमें मार डालेगा यह सब बातें हम लोगों को भयभीत करने के लिए कही जाती हैं उस ब्रह्म राक्षस ने आज तक किसी को मारा भी हैं।
प्रतिभाशाली व्यक्तित्व
नरेंद्र ने बचपन में ही बंगला भाषा की सभी प्रमुख पुस्तकें पढ डाली थी वह जो भी पढ़ते उसे अपने दिल दिमाग में बिठा लेते याद करने की क्षमता तो उनकी कमाल की थी।
उनके बचपन की एक घटना है कक्षा में मास्टर जी पढ़ा रहे थे उधर नरेंद्र अपने स्कूल में पढ़ने वाले दोस्तों के साथ गप्पे लड़ा रहे थे मास्टर जी ने देख लिया उन्होंने बात करने वाले बच्चों को खड़ा होने का आदेश दिया। मास्टरजी पूछने लगे कि बताओ मैं क्या पढ़ा रहा था। नरेंद्र से पूछने पर उन्होंने सही-सही बता दिया यह सुनकर मास्टर जी ने समझा कि यह निर्दोष हैं उन्हें बैठने को कह दिया गया बाकी बच्चे उसी तरह खड़े रहे कुछ देर बाद नरेन्द्र को खड़ा देखकर मास्टरजी ने पूछा कि तुम क्यों खड़े हो तुम्हें तो मैंने बैठने को कहा था इस पर नरेंद्र ने कहा कि बातें मैं ही कर रहा था यह तो सिर्फ सुन रहे थे इसलिए मुझे भी सजा मिलनी चाहिए यह घटना विलक्षण प्रतिभा और सत्य के प्रति निष्ठा का सुंदर उदाहरण है।
नरेंद्र के पिता नरेंद्र की प्रतिभा का पूर्ण विकास करना चाहते थे जिससे वह केवल स्कूल पढ़ाई तक सीमित ना रहे इस कारण से पुत्र के साथ अनेक विषयों पर वाद विवाद और तर्क वितर्क करते रहते इस तरह नरेंद्र की प्रतिभा और निखरने लगी। पिता की उदारता, ज्ञान गरिमा और पर दुख के प्रति सहानुभूति का नरेंद्र पर काफी प्रभाव पड़ा था जब नरेंद्र 16 साल के हुए तो उनके हष्ट पुष्ट शरीर को देखकर लोगों को इनकी आयु के संबंध में संदेह होने लगा इतनी सी उम्र में वह 20 साल के दिखाई देते थे इन्हीं दिनों नरेंद्र को व्यायाम का भी शौक लग गया और वह रोजाना व्यायाम शाला जाने लगे इससे शरीर और भी पुष्ट और बलिष्ठ हो गया वे अपने खिलाड़ी साथियों में सबसे आगे रहते थे एक बार उन्होंने मुक्केबाजी में ईनाम जीता, क्रिकेट खिलाड़ियों में भी उनका नाम था।
मेट्रोपोलिटन इंस्टीट्यूट के एक शिक्षक रिटायर होने वाले थे नरेंद्र ने अपने सहपाठियों के सहयोग से उनका अभिनंदन करने का निश्चय किया स्कूल के वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह के दिन ही इस अभिनंदन का भी आयोजन था छात्रों की तरफ से कोई भी सभा में भाषण देने की हिम्मत नहीं कर रहा था अंत में निश्चय हुआ कि नरेंद्र भाषण करेगा नरेंद्र ने आधा घंटे तक भाषण देकर अपने सभी शिक्षकों के गुणों पर प्रकाश डाला और अंत में छात्रों की तरफ से भाव भरी श्रद्धांजलि देकर उनके विछोह से उत्पन्न दुख का वर्णन करके बैठ गए यह घटना सिद्ध करती है कि अपनी वक्तव्य शक्ति से संसार में धाक जमाने वाले स्वामी विवेकानंद में यह गुण किशोरावस्था में ही दिखाई देने लगा था।
दोस्तों तो ये थी स्वामी विवेकानंद जी के बाल्य काल की कुछ घटनाएं। अगर यह जानकारी आपको पसंद आए तो कमेंट और शेयर अवश्य करें और अपने अपने सुझाव अवश्य दें ताकि हम आगे और भी सुधार कर बेहतर जानकारी उपलब्ध करा सकें। In the occasion of national youth day.
धन्यवाद🙏
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