स्वामी विवेकानंद जी का जन्म

स्वामी विवेकानंद जी का जन्म
 Birth of swami vivekanand

स्वामी विवेकानंद के जन्म के संबंध में घटना प्रचलित है की एक रात भुवनेश्वरी देवी ने स्वप्न में देखा कि भगवान शंकर उनके सामने खड़े हैं वह अपने आराध्य देव को देखकर भावविभोर हो गई और उनकी भक्ति करने लगी देखते ही देखते शिवजी एक शिशु के रूप में बदल गए और भुवनेश्वरी देवी की गोद में बैठे उसके बाद भुवनेश्वरी देवी की नींद खुल गई। सपने के फल स्वरुप 12 जनवरी 1863 ई. को स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ।  परिवार के सदस्यों की ओर से बालक के नाम का प्रस्ताव दुर्गादास आया है परन्तु माँ ने शिव का वरदान मान उसको वीरेश्वर नाम दिया संक्षिप्त के विले कहकर पुकारने लगे बाद में उनका नाम नरेंद्र रखा गया।

 नरेंद्र बाल काल में शरारती स्वभाव के थे इस कारण परिवार का प्यार दुलार था घर का कामकाज निपटा कर परिवार की सभी स्त्रियां एक जगह इकट्ठा हो जाती थी और धार्मिक विषय पर बातचीत करती रहती थी कभी रामायण का पाठ होता तो कभी महाभारत का ऐसे समय में शरारती नरेंद्र परिसर औरतों को छोड़कर चुपचाप वहां बैठ जाता और धार्मिक बातों को बड़े ध्यान से सुनता।

बाल काल से ही नरेंद्र लोकाचारों को नहीं मानता था वह तरह-तरह के सवाल अपनी मां से पूछता रहता था कि रसोई में जाकर भोजन शुद्ध किस प्रकार हो जाता है यह पानी पाए हंसी क्यों पीना चाहिए मगर उसके पैसे पेचीदा सवालों के जवाब मैं नहीं दे पाती थी दिन प्रतिदिन इन लोगों चारों के प्रति उसकी उपेक्षा नासिर बढ़ती जाती बल्कि वह अपनी मेहनत से इन्हें तोड़ने का प्रयत्न करने लगता इनके पिता के पास सभी जातियों के लोग मुकदमे के सिलसिले में आते रहते थे इन्हीं लोगों में अनेक व्यक्ति मुसलमान जाति के पीछे नरेंद्र काफी हद तक उनसे घुलमिल गए थे जब भी जाते नरेंद्र के लिए कुछ ना कुछ खाने की चीजें जरूर लेकर आते और नरेंद्र उनकी लाई हुई चीजें बड़े चाव से खाते परिवार के अन्य सदस्य पूरी तरह बौखला जाते थे लेकिन नरेंद्र के पिता ने कभी इस बात का कोई विरोध नहीं किया था।

नरेंद्र को छुआछूत का मतलब बिल्कुल समझ में नहीं आता कि इस छुआछूत बारी बात को अगर कोई ना माने तो उसका क्या बुरा हो सकता है कई बार वह इन बातों को जानने के लिए जिगा शुरू हो जाते और अपने परिवार वालों से यह सब पूछते रहते थे एक बार इसी बात को जानने के लिए नरेंद्र पिता की बैठक में घुस गए वहां विभिन्न जातियों के लोग आकर बैठे थे और हुक्का गुड गुड आ रहे थे नरेंद्र उन्हें हुक्का पीते देखते रहे कि इस से अनर्थ क्यों और कैसे हो सकता है?

जिस समय वह ऐसा कर रहे थे तभी नरेंद्र के पिता वहां आ गए नरेंद्र के पिता के पूछने पर उन्होंने सारी बात पिता को बताई  । नरेंद्र की बात सुनकर उनके पिता विश्वनाथ जी को हंसी आ गए और पुत्र की जिज्ञासा और मनुष्य के प्रति समानता पर भी विचार करने लगे और वहाँ से चले गए।
बचपन में नरेंद्र जब अपनी माता को शिव की पूजा करते देखते तो वह भी उन की भांति शिव की पूजा करने सीख गए वे शिव जी की मूर्ति के सामने अपनी आंखें बंद करके बैठ जाते और ना जाने कितनी देर तक यूं ही ध्यान में डूबे रहते उनके ऊपर अपनी मां का प्रभाव पड़ा था या उनके किसी पिछले जन्म का फल था इस विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता अपने दोस्तों को भी वह कभी-कभी इस कार्य में शामिल कर लेते थेबचपन में नरेंद्र जब अपनी माता को शिव की पूजा करते देखते तो वह भी उनकी भांति शिव की पूजा करने सीख गए वे शिव जी की मूर्ति के सामने अपनी आंखें बंद करके बैठ जाते और ना जाने कितनी देर तक यूं ही ध्यान में डूबे रहते उनके ऊपर अपनी मां का प्रभाव पड़ा था या उनके किसी पिछले जन्म का फल था इस विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता अपने दोस्तों को भी वह कभी-कभी इस कार्य में शामिल कर लेते थे। एक दिन ना जाने कहां से नरेंद्र के दिल में एक प्रश्न आया और उन्होंने मां से जाकर पूछा कि "मां तुम कई बार कह चुकी हो कि भगवान शंकर मुझे कैलाश पर्वत से वापस नहीं आने देंगे लेकिन अगर न साधु बन गया तो फिर शंकर जी मुझे वहां जाने आने देंगे", मां ने बड़े प्यार से उत्तर दिया हां बेटा साधु बन जाने पर मैं तुम्हें जरूर आने देंगे। उस समय तो भुवनेश्वरी देवी ने बच्चे को बहलाने के लिए ऐसा उत्तर दे दिया था मगर अगले ही पल उन्हें इस बात का एहसास हो गया कि उन्हें इस तरह का उत्तर नहीं देना चाहिए था वह बेटे के साधु बन  जाने की कल्पना से ही डर गई उसका कोई भरोसा नहीं था शंकराचार्य जी ने भी संन्यास लेने के लिए अपनी मां की आज्ञा मांगी थी उस समय इस बात को कोई नहीं जानता था कि यह छोटा सा बच्चा शंकर की परंपरा को आगे बढ़ाने वाला तथा सात समुंदर पर उनके संदेश को पहुंचाने वाला साबित होगा।
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पूरा लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद।😊

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